हजारो ऐसे रिस्तो को, निभाना छोड़ दी मैंने.

हज़ारों दर्द है दिल में, मगर सब मुस्कुराते हैं
नहीं है प्यार फिर भी क्यों, मोहब्बत सब जताते हैं.

नहीं चाहत है मिलने की, गले फिर भी लगाते हैं.
दिखाकर दोस्ती का रंग , रंजिस सब छुपाते हैं.

जहाँ रिस्ता नहीं होता, वहां रिस्ता बनाते हैं.
जनम का है जहाँ नाता, वो नाता भूल जाते हैं.

असल में और कुछ हैं सब, मगर क्या- क्या दिखाते हैं.
बड़े बेरंग होकर भी, नज़र रंगीन आते हैं.

मुझे सिकवा नहीं कोई, कि सारे इस तरह क्यूो हैं.
हक़ीक़त है यही दुनिया की, ये क्यों हम भूल जाते हैं.

इसी के वास्ते मिलना, मिलाना छोड़ दी मैंने,
किसी को देखकर, यु मुस्कुराना छोड़ दी मैंने.

जो रिस्ता सिर्फ दुनिया को दिखाने को ही ज़िंदा थे,
हजारो ऐसे रिस्तो को, निभाना छोड़ दी मैंने.

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3 comments

  1. Its Nice ….

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